Thursday, December 6, 2012

murli 07.12.12 vichar sagar manthan

ॐ शान्ति दिव्य फरिश्ते !!! विचार सागर मंथन: दिसंबर 7, 2012 बाबा की महिमा: ज्ञान के सागर पतित पावन निराकार परमपिता परमात्मा शिव बाबा हैं...मेरा बाबा...प्यारा बाबा...मीठा बाबा...दयालु बाबा...कृपालु बाबा... सत बाप...सत टीचर...सत गुरु... बेहद का बाप... सर्वशक्तिमान... ­सत चित आनंद स्वरूप...बीजरूप ­...सदगति दाता...भोला नाथ... भक्तों का रक्षक...क्रिएटर ­, डायरेक्टयर, मुख्यएक्टर...कर ­नकरावनहार... स्वमान और आत्मा अभ्यास : ज्ञान: हम आत्माएँ, बिगड़ी बनानेवाले भोले नाथ के सम्मुख बैठ ज्ञान की मुरली सुनकर ज्ञान का तीसरे नेत्र पानेवाले, सृष्टि का आदि-मध्य-अंत का राज़ जाननेवाले, विचार सागर मंथन करनेवाले, गॉड्ली स्टूडेंट हैं... योग : मेरा तो एक बाप दूसरा ना कोई...बाप कहते हैं मामेकाम याद करो...मैं भी बिंदी, बाप भी बिंदी, ड्रामा भी बिंदी... हम अजर अमर अविनाशी आत्माएँ, देही अभिमानी बन, एकान्त प्रिय होकर, एकान्त वासी बन, मन और बुद्धि को दृढ़ संकल्प से एकान्मि कर एकरस, एक्टिक, एकाग्र बनानेवाले, एकनामीबननेवाले दुख से लिबरेट होकर खुशनुमः हैं... अविनाशी बेहद के ड्रामा में 84 जन्मों का पार्ट बजाकर, बाप की याद में रहकर विकर्म विनाश कर रूहानी नशे में रहनेवाले, मुक्ति में जाकर फिर जीवन मुक्ति में आनेवाले, स्वर्ग के मालिक हैं... धारणा: हम आत्माएँ, प्रवृत्ति मेंरहते हुए पवित्रता की पालना करनेवाली पार्वतियाँ हैं ....माया के तूफ़ानों के वार को पार कर ख़ान-पान की परहेज रखनेवाली, श्रीमत पर एक्यूरेट चल, नारी से लक्ष्मी बननेवाली, सतयुग की महारानियाँ हैं... सेवा: हम आत्माएँ, ज्ञान की डमरू, ज्ञान की शंख ध्वनि चित्रों द्वारा कर, सृष्टि की हिस्ट्री-जाँग्र ­ाफी, नई दुनिया की स्थापनाऔर विनाश की ज्वाला, महाभारत की लड़ाई , 5000 वर्ष की टाइम साइकिलकैसे रिपीट होती है, बहुतों को अच्छी रीति फुर्तिसे समझानेवाले,अपने पवित्रता की धारणा के अनुभव सुनाकर, बाप का भारत में अलौकिक जन्म, बाप का परिचय देकर बाप को प्रत्यक्ष करनेवाले, सवोत्तम सवाधारी हैं... वरदान: हम आत्माएँ, बाप के साथ सदाकम्बाइंड रहकर प्यार से “मेरा बाबा” कहनेवाले, परमात्म अधिकारी हैं...बेहद के दाता द्वारा सर्व प्राप्ति संपन्न बन, तीनों लोक केअधिकारी बन, 21 जन्मों का ग़ैरंटीकार्ड प्राप्त कर, अलौकिक खुशी औरनशे में गाते रहते हैं, “जो पाना था वो पा लिया,अब और क्या बाकी रहा?”... स्लोगन : हम आत्माएँ, शान से परे परेशान के प्रभाव से परे ऊँची स्थिति में स्थित नीचे रहनेवालोंका खेल साक्षी हो देखनेवाले, देहीअभिमानी समाधान स्वरूप हैं...वायुमंडल, ­ वातावरण, व्यक्ति,सर्व संबन्धों, आवश्यक साधनों की अप्राप्ति की हलचल से परे साधना करनेवाले, अचल हैं... प्रकृत्ती द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाकर और प्रकृत्ति के साधनों से समय प्रमाण निराधार होनेवाले, कर्मातीत हैं...

2 comments:

  1. विचार सागर मंथन से ही विष और अमृत दोनों निकलते हैं। बिना परेशान हुये गहन व गम्भीर चिंतन ही विचार सागर मंथन है।
    विचार ठहरता नहीं मन में
    इसीलिये उसमें दम नहीं
    ठहराया जाये गर विचार मन में
    तो वो किसी रसगुल्ले से कम नहीं

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  2. विचार सागर मंथन से ही विष और अमृत दोनों निकलते हैं। बिना परेशान हुये गहन व गम्भीर चिंतन ही विचार सागर मंथन है।
    विचार ठहरता नहीं मन में
    इसीलिये उसमें दम नहीं
    ठहराया जाये गर विचार मन में
    तो वो किसी रसगुल्ले से कम नहीं

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