Tuesday, August 7, 2012
मुरलि सार
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम संगमयुगी ब्राह्मणों का धर्म और कर्म है ज्ञान अमृत पीना और पिलाना,
तुम नर्कवासी को स्वर्गवासी बनाने की सेवा करते हो''
प्रश्न: तुम ब्राह्मणों को कर्मों की किस गुह्य गति का ज्ञानमिला है?
उत्तर: अगर बाप का बनने के बाद कभीभी अपनी कर्मेन्द्रियों से कोई पाप कर्म किया तो एक पाप
का सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा - यह ज्ञान तुम ब्राह्मणों को है, इसलिए तुम कोई भी पाप कर्म नहीं कर
सकते हो। अभी तुम ब्राह्मणों का लक्ष्य है - सर्वगुण सम्पन्न बनना, इसलिए तुम अपने अवगुणों
को निकालने का ही पुरूषार्थ करो।
गीत:- भोलेनाथ से निराला....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना रजिस्टर खराब न हो इसका ध्यान रखना है। बाप की आज्ञा मान देही-अभिमानी बनना है।
कर्मेन्द्रियों से कोई भी भूल नहीं करनी है।
2) सर्वगुण सम्पन्न बनने के लिए कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म न हो जाए जिसका विकर्म बन जाये।
पुराना हिसाब-किताब चुक्तू करना है।
वरदान: पूर्वजपन की स्मृति द्वारा सर्व की पालना करने वाले शुभ वृत्ति वा मंसा शक्ति सम्पन्न भव
किसी भी धर्म की आत्माओं को मिलतेवा देखते हो तो यह स्मृति रहे कि यह सब आत्मायें हमारे ग्रेट-ग्रेट
ग्रैन्ड फादर की वंशावली हैं। हम ब्राह्मण आत्मायें पूर्वज हैं। पूर्वज सभी की पालना करते हैं। आपकी अलौकिक
पालना का स्वरूप है बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियां अन्य आत्माओं में भरना। जिस आत्मा को जिस शक्ति की
आवश्यकता है, उसकी उस शक्ति द्वारा पालना करना। इसके लिए अपनी वृत्ति बहुत शुद्ध और मन्सा,
शक्ति सम्पन्न होनी चाहिए।
स्लोगन: जिसके पास ज्ञान का अविनाशी धन है-वही दुनिया में सबसे बड़ा सम्पत्तिवान है।
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